पहाड़ी गांव में देसी चूत चुदाई के किस्से- 4

शुभम शर्मा

22-12-2021

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गाँव की औरत की चुदाई का मजा लिया मैंने अपने पड़ोस में रहने वाली एक महिला की चुदाई करके! उस दिन मैं उनके घर सोया था क्योंकि मेरे घर में कोई नहीं था.


उत्तराखंड के एक गांव की इस सच्ची देसी सेक्स कहानी में आपका एक बार फिर से स्वागत है. कहानी के तीसरे भाग पड़ोस की दीदी ने चुदाई करवाई मुझसे में अब तक आपने पढ़ा था कि मैंने अपनी बड़ी दीदी को चोद दिया था. हम दोनों सो गए थे.


अब आगे गाँव की औरत की चुदाई:


करीब एक या दो बजे मेरी नींद खुली तो देखा कि मेरे पैरों की तरफ कोई लेटा था और वो मेरा लंड हिला रही थी.


अंधेरे में कुछ दिख नहीं रहा था. बड़ी दीदी मेरे बगल में ही थी.


सुबह दीदी उठी और बाहर चली गई.


मेरी नींद खुली तो मैंने देखा कि मेरे पैरों की तरफ छोटी बहन थी. मैं लेटा रहा.


मैंने देखा कि दादी के बिस्तर पर भी कोई दूसरी औरत लेटी हुई थी.


जब मैं उठ कर बाहर गया तो दादी चाय बना रही थीं.


कुछ देर बाद छोटी बहन आ गयी. आज वो मुझे देख कर हंस रही थी.


मुझे स्कूल जाना था तो मैं सात बजे स्कूल चला गया.


कोई 12 बजे अपने घर की तरफ आया तो मालूम हुआ कि मम्मी आज भी नहीं आई थीं.


मैं दादी के घर आ गया, वहां कोई नहीं था.


मैं नल की तरफ गया तो देखा कि दादी नहा रही थीं. तो मैं घर में आ गया.


मुझे पता था कि दादी यहीं पर आकर कपड़े पहनेंगी. मैं उनकी खाट के नीचे चला गया.


दादी वही पेटीकोट पहन कर अन्दर आईं. दादी ने पेटीकोट नीचे उतार दिया. इसके बाद उन्होंने ब्लाउज पहना, फिर बाहर की तरफ देखा और तेल की शीशी निकाल ली. थोड़ा तेल हाथ में लिया और अपनी चुत में लगाने लगीं.


मैं देखता रहा … क्या मस्त चुत थी. मेरा मन कर रहा था कि दादी को भी चोद दूँ, पर नहीं कर सका.


फिर दादी ने साड़ी पहनी और बाहर आ गईं.


अब बाहर कैसे जाऊं, मैं यही सोच रहा था.


तभी किसी ने दादी को आवाज लगाई.


दादी बाहर की तरफ गईं तो मैं जल्दी से दूसरे रास्ते से भाग कर नल की तरफ आ गया. मुँह हाथ धोकर आया, तब दादी चौकी पर बैठ कर अपने बाल बना रही थीं.


मैं- दादी, खाना दे दो, मुझे भूख लगी है.


दादी ने मुझे भात दिया.


मैंने पूछा- चाचा कहां गए? वो बोलीं- रिश्तेदारों के यहां गए हैं.


मैं- बड़ी दीदी? क्या वो भी गयी है? दादी- हां.


मैं- छोटी दीदी? दादी- वो गाय के साथ गयी है.


मैं- ठीक है. खाना खाने के बाद मैं लेट गया.


दादी भी खाकर मेरे बगल में लेट गईं. मैंने कंबल ओढ़ रखा था.


दादी ने भी अपने पैर कम्बल के अन्दर डाल दिए. दादी के पैर ठंडे थे तो मेरी नींद खुल गई.


मैंने आंखें बंद करके अपना हाथ दादी के पैरों में लगाया. मेरे हाथ गर्म थे.


दादी ने सोचा कि शायद मैं नींद में हूँ.


मैं धीरे धीरे अपना हाथ ऊपर ले जाता रहा. कुछ देर में मेरा हाथ दादी की चुत के करीब आ या था. मुझे चुत की गर्मी महसूस हो रही थी.


इतने में दादी ने मेरे चेहरे के ऊपर से कम्बल हटा दिया. मैंने आंखें बंद कर लीं.


दादी को लगा कि मैं नींद में हूँ, तो दादी ने मेरा हाथ हटा दिया.


मैंने कुछ देर बाद फिर से हाथ डाला. इस बार दादी कुछ नहीं बोलीं, ना ही कुछ किया.


अब मेरा हाथ दादी की चुत पर आ चुका था. उनकी चुत पहले ही तेल से चिकनी हो रखी थी और झांटों के बाल गीले हो रखे थे.


तभी किसी ने आवाज मारी. दादी उठ कर बाहर चली गईं, मैं लेटा रहा.


फिर मुझे नींद कब आ गयी, पता ही नहीं चला.


करीब आठ बजे छोटी बहन ने मुझे जगाया- खाना नहीं खाएगा क्या?


मैं उठा और बाहर आ गया. बाहर अंधेरा छा गया था.


मैंने पूछा- दीदी टाइम क्या हुआ? वो बोली- रात हो गयी, खाना खा और फिर से सो जा!


मैंने खाना खाया और फिर से लेट गया. दादी भी खाकर मेरे बगल में बैठ गईं और दीदी भी.


फिर दादी दीदी से बोलीं- सो जा.


दीदी मेरे बगल में लेट गईं. दादी ने भी पैर अन्दर डाल दिए और बोलीं- आज हम सब एक साथ ही सो जाते हैं.


दीदी पैरों की तरफ से लेट गईं, दादी मेरे बगल में बैठी थीं, मैं बीच में था.


मैं दादी से बोला- लालटेन बंद कर दो. दादी बोलीं- तू सो जा, मुझे अभी नींद नहीं आने वाली है.


मैं पीछे होकर दीदी की गांड पर हाथ फेरने लगा. दीदी भी चालाक थी, उसने अपनी सलवार को नीचे से हल्का फाड़ रखा था, पर छेद छोटा सा था तो मेरी एक उंगली ही जा पाई.


मैं दीदी की चुत में उंगली करने लगा. कुछ देर में पानी निकला तो दीदी ने मेरा हाथ हटा दिया और सो गईं.


पर मेरा लंड तो खड़ा हो गया था.


मैंने सोने का नाटक करके करवट बदली और दादी की तरफ घूम गया. अब मेरा आधा चेहरा कंबल के अन्दर था.


मैंने एक आंख खोल कर देखा, तो दादी कुछ सिल रही थीं.


मैंने अपना हाथ दादी के पैर पर रख दिया … तो दादी रुक गईं.


फिर वो अपने काम में दुबारा से लग गईं. मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाने के लिए एक अंगड़ाई ली और हाथ दादी के घुटने तक ले गया.


अब धीरे धीरे हाथ से उनकी साड़ी ऊपर घुटनों तक की. दादी थोड़ा हिलीं और उन्होंने अपने दोनों पैर खोल दिए.


मेरा हाथ बीच में चला गया. मैंने फिर से अंगड़ाई ली और अपना हाथ दादी की चुत तक ले गया. मैं डर भी रहा था, पर जुनून था.


दादी ने कुछ नहीं कहा. मैंने अपना हाथ रोक कर, आंख खोल कर देखा … तो दादी काम में ही लगी थीं.


अब मैंने अपनी उंगलियों से हल्के से चुत को छुआ तो दादी ने मेरी तरफ ध्यान से देखा पर मैंने आंखें बंद कर दीं.


फिर दादी काम में लग गईं. मैं हल्के हल्के से उंगली कर रहा था.


कुछ देर बाद दादी ने दीदी को आवाज लगाई कि सो गई क्या? दीदी गहरी नींद में थी, तो कुछ नहीं बोली.


दादी चुप हो गईं. मेरा हाथ अपना काम कर रहा था. दादी की चुत गीली हो गयी थी.


अचानक दादी उठ कर बाहर चली गईं.


मुझे लगा दादी दूसरे बिस्तर में लेट गयी होंगी. पर दादी मूतने गयी थीं.


वो फिर आ गयी और अब दादी ने साड़ी उतार दी. दादी हमेशा पेटीकोट में ही सोती थीं. मैं वैसे ही लेटा रहा.


दादी ने दीदी को एक रजाई और डाल दी, फिर लेट गईं.


दादी लेटीं, तो मेरे हाथ से दादी का पेटीकोट ऊपर ही रह गया. मेरा हाथ सीधा चुत पर चला गया.


ये अपने आप हुआ था या दादी ने ऐसा हो जाने दिया था, मुझे नहीं पता.


कुछ देर बाद मैंने अपना लंड दूसरे हाथ से बाहर निकाला और करवट लेकर लंड दादी की जांघ पर रख दिया. मेरा लंड गर्म था.


दादी ने अपने हाथ से लंड पकड़ा पर कुछ किया नहीं. दादी अब घूम गईं, मेरा लंड उनकी गांड पर लग गया था. दादी तिरछी हुईं तो उनकी गांड मेरे पेट पर आ गई थी;


यानि दादी लेटी हुई घोड़ी जैसी हो गयी थीं. मैं लंड गांड में डाल रहा था, तो वो चुत में चला गया.


हल्की सी आवाज आई- फच …


मुझे लगा कि मेरा लंड किसी रसेदार चीज में घुस गया है.


मैं धीरे धीरे लंड को आगे पीछे करने लगा. दादी की सांस बहुत तेज हो रही थीं, वो आवाज भी निकाल रही थीं- अंह अन्ह अंह!


फिर जब मेरा निकल गया तो मैं रुक गया.


दादी अब खुद आगे पीछे हो रही थीं. कुछ देर बाद वो भी शांत हो गईं.


मेरा लंड भी ढीला होकर दादी की चुत से बाहर निकल गया. मैं सो गया.


फिर रात को मेरे लंड पर एक और हाथ था.


मुझे लगा कि ये दीदी का हाथ होगा, पर दादी का ही था. मैं दादी की गांड पर लंड लगा कर सो गया.


सुबह पहले दादी उठीं तो मुझे लंड पर ठंड लगी. मैंने अपना लंड पजामे के अन्दर डाल लिया और दूसरी तरफ सो गया.


जब उठा तो दीदी भी उठ चुकी थीं. उस दिन मेरे मम्मी पापा भी आ गए थे. मैं अपने घर आ गया.


कुछ दिन तो घर पर रौनक थी क्योंकि मामा के घर से मिठाई आयी थी.


एक महीने बाद मेरे पेपर शुरू हो गए. पेपर खत्म होने के बाद मई में चाचा की बहन की सगाई थी तो हमारा परिवार भी वहां गया था.


दीदी आज मस्त सजी थी.


मम्मी ने भी हरे रंग का सूट पहन रखा था. पापा भी थे.


दीदी की सगाई करीब 9 बजे हुई, फिर खाना खाते खाते करीब ग्यारह बज गए.


दादी बोलीं- आज यहीं लेट जाओ, अब घर मत जाओ.


ऊपर वाले कमरे में पापा चाचा के साथ दो मेहमान आए हुए थे, वो चले गए.


मेरा भाई भी पापा का लाड़ला था तो वो भी पापा जी के साथ सो गया. जहां खाना बनाते थे, वहां पर बिस्तर लगा कर दादी, मम्मी, बड़ी दीदी, छोटी दीदी कोने में लेट गईं.


पापा और मेहमानों ने दारू पी थी, उस बोतल में आधी बच गई थी, तो दादी मम्मी से बोलीं- पिएगी? मम्मी बोलीं- हां.


दोनों ने तीन तीन पैग लगा लिए. फिर सब लेट गए.


मैं बड़ी दीदी के साथ सोना चाहता था. आज वो बहुत खूबसूरत लग रही थीं. मम्मी भी साथ में थीं.


दादी और मम्मी को तगड़ा नशा हो गया था. दादी ने दरवाजा बंद किया और लालटेन बुझा दी. अब पूरे कमरे में अंधेरा हो गया था.


मुझे दीदी के पास जाना था.


कुछ देर तक मैं रुका, फिर उठ कर दीदी के बगल में आ गया. मैंने दीदी की चुत पर हाथ लगाया तो दीदी कुछ नहीं बोली.


मैंने सोचा कि मम्मी या दादी उठें, उससे पहले मैं दीदी को चोद देता हूं.


मैंने नाड़ा खोला और अपना लंड दीदी की चुत में डाला तो मेरा लंड आराम से अन्दर चला गया.


मैं भी अंधेरे में चुत चोदने में मस्त हो गया.


जैसे ही मैं झड़ने वाला था कि किसी ने आवाज करके करवट बदली.


मैं डर सा गया, डर से मेरा जो काम तमाम होने वाला था, वो अटक गया.


कुछ देर रुक कर मैं फिर से चुदाई में लग गया. मैं इतना डर गया कि मेरा माल ही नहीं निकल रहा था.


करीब आधे घंटे बाद मेरा माल निकला और मैं उठ कर अपनी जगह चला गया.


मैं कुछ देर बाद सोने लगा.


अभी मुझे नींद आने ही वाली थी कि लगा कि कोई मेरा लंड टटोल रहा है.


मैं जाग गया और उसकी हरकत महसूस करने लगा. फिर उसने मेरा लंड मुँह में लिया.


मैं समझ गया कि ये बड़ी दीदी है, दुबारा चुदने आयी है.


मेरा लंड खड़ा हुआ तो वो ऊपर से बैठ गई. मेरा लंड उसकी चुत में घुस ही नहीं रहा था. मेरा लंड का सुपारा पहले ही चुदाई करके फूल गया था.


दीदी ने कोशिश की तो लंड अन्दर चला गया. कुछ देर रुक कर दीदी ऊपर नीचे होने लगी.


इस बार मेरा पानी पांच मिनट में निकल गया. दीदी भी उठ कर चली गयी.


मैं सो गया.


सुबह करीब चार बजे दादी आईं और बोलीं- मुझे ठंड लग रही है, मैं यहां सो जाती हूँ.


मैं कोने में था.


दादी मेरे आगे मेरे कम्बल में आ गईं. मेरी नींद हल्की खुली थी. मैंने जोर लगाकर दादी का पेटीकोट ऊपर कर दिया.


मेरा लंड सुबह के समय खड़ा हो जाता है तो मैंने लंड पेल दिया.


अब दादी की चुत फट फट की आवाज कर रही थी. मेरे लंड में दर्द हो रहा था. आज मैं तीसरी बार चुदाई कर रहा था.


दादी मस्त आवाज कर रही थीं- अंह अंह उँह!


जब मेरा होने वाला था तो मैं रुक गया. अब दादी हिलने लगी थीं.


जब मेरा रस निकल गया तब दादी ने अपना पेटीकोट नीचे कर दिया.


मेरा लंड मेरे पजामें में अन्दर किया, मेरे माथे पर चुम्मी ली, फिर सो गईं.


सुबह उठ कर हम अब अपने घर आ गए.


घर आकर मैं फिर से सो गया. दिन में उठा, तो पापा घर पर नहीं थे, मम्मी भी नहीं थीं.


मैंने सोचा कि वो गोशाला में काम कर रहे होंगे.


मैं उधर जाने को उठा, तभी पापा और छोटा भाई किसी के घर में बैठे हुए थे, वो वापस आ गए थे.


मुझे देख कर पापा बोले- गाय के बछड़े को अन्दर बांध कर थोड़ी लकड़ी ले आना.


मैं गोशाला में चला गया. बछड़ा अन्दर बांध कर बाहर आ रहा था तो मुझे मम्मी की चुनरी, रस्सी, दरांती वहीं पर पड़ी मिली. मैं समझ गया कि मम्मी यहीं कहीं पर हैं, पर कहां हैं ये नहीं मालूम था.


हमारा गांव कुछ इस तरह से है कि सब लोगों की गोशाला एक तरफ है … और घर एक तरफ हैं. घरों में बहुत डिस्टेंस है, किसी का घर उस कोने में है तो किसी का खेतों के बीच में हैं.


हमारा घर कोने में है, जिसमें आठ कमरे हैं. मेरे पापा के हिस्से में एक कमरा है, पर कमरा बहुत बड़ा है. हम उसके एक कोने में खाना बनाते हैं, तो दूसरे में सोते हैं. बाकी कमरे मेरे दूसरे चाचा लोगों के हिस्से में हैं. वो हमसे बात भी नहीं करते हैं.


हमसे सिर्फ एक ही चाचा का परिवार जुड़ा था. ये चाचा ही मेरी मम्मी की चुत चोद चुके थे और उनके साथ रहने वाली दादी और उनकी बहनें मेरे लंड से चुद चुकी थीं.


मैं मम्मी को ढूंढ़ने लगा, पर वो कहीं नहीं दिखीं.


गोशाला के कोने में एक दीवार है, वो इसलिए बनाई गई है कि जंगली जानवर घरों की तरफ ना आ सकें. वो दीवार बहुत लम्बी है.


मैं उस पर चढ़ गया और वहां से देखने लगा कि कहीं तो मम्मीं दिखें, पर मम्मी नहीं दिखीं.


तो मैं हताश होकर दीवार दीवार आगे जाने लगा.


आगे मुझे कुछ हंसने की आवाज आ रही थी. मैं आगे गया, तो वहां पर खेत में गांव की औरतें बात कर रही थीं.


मैंने उनसे पूछा- आपने मेरी मम्मी को देखा है? तो एक बोली- हां, कुछ देर पहले गोबर का डाला लेकर नदी वाले खेत की तरफ गयी थी. मैं- ठीक है.


तब मैं दीवार से नीचे उतरा और खेत की तरफ गया.


मुझे अपने खेत के ऊपर जाने में करीब पांच मिनट लगे. वहां से नीचे देखा, तो मम्मी घास काट रही थीं.


मैं निश्चिंत हो गया कि मम्मी अकेली ही हैं. अभी मम्मी कोने की तरफ देख कर हंस रही थीं.


गाँव की औरत की चुदाई कहानी के अगले भाग में मैं आपको अपनी मम्मी की चुदाई की कहानी आगे लिखूँगा. आप मेल करें. [email protected]


गाँव की औरत की चुदाई का अगला भाग: पहाड़ी गांव में देसी चूत चुदाई के किस्से- 5


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