पहाड़ी गांव में देसी चूत चुदाई के किस्से- 3

शुभम शर्मा

21-12-2021

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गाँव की लड़की की चूत चोदी मैंने! मैं उसे दीदी कहता था. एक रात मैं उनके घर सोया तो हम दोनों अगल बगल लेटे. दीदी ने अपनी सलवार ढीली कर ली.


दोस्तो, मैं आपको अपने गांव में सच्ची देसी सेक्स कहानी का मजा लिख रहा था. पिछले भाग मेरे दोस्त ने मेरी मम्मी को चोदा में अब तक आपने पढ़ा था कि बारिश में पत्थर की आड़ में चाचा ने मम्मी की चुत को गर्म कर दिया था.


गाँव की लड़की की चूत कैसे चुदी:


कुछ देर बाद बारिश बन्द हो गयी तो मैं उठ कर बाहर आ गया.


फिर चाचा भी बाहर आ गए. मैंने देखा चाचा अपनी उंगली को कुछ अलग सी किये हुए थे और उनकी उंगली गीली व चिप चिप सी हो रही थी.


मैं घूमा, तो देखा मम्मी अपनी सलवार का नाड़ा बांध रही थीं.


फिर हम सब घर की तरफ चल दिए.


हम घर आए तो पापा ने चाय बना कर रखी थी और वो छोटे भाई को पढ़ा रहे थे.


मैं अन्दर गया और कपड़े बदल लिए.


मम्मी बोलीं- मैं पहले दूध ले आती हूँ, फिर रात हो जाएगी. कपड़े बाद में बदल लूंगी.


इतना कह कर मम्मी दूध लेने चली गईं. मैं भी स्कूल का काम करने बैठ गया.


मम्मी करीब एक घंटे बाद आईं. तब तक मेरा काम हो गया था.


मम्मी बोलीं- मेरे लिए थोड़ी चाय बना दे और मेरे कपड़े भी निकाल दे.


मैंने चाय बनाने के लिए रख दी और मम्मी के कपड़े निकालने लगा. मैंने मम्मी की सलवार को नीचे से हल्का सा फाड़ दिया.


मम्मी ने पहले शर्ट उतारा और फिर सलवार उतार कर मुझसे कहा- ये बाहर रख दे.


मैं बाहर रखने गया तो मैंने मम्मी की सलवार सूंघी. उसमें अलग ही महक थी.


मैं रख कर जल्दी से आ गया कि मम्मी को सलवार पहनते देखूं! पर मम्मी ने सलवार पहन ली थी और चूल्हे के सामने बैठ गयी थीं.


मैं गया और मम्मी को चाय दी. तभी चाचा भी आ गए पर चाचा चाय नहीं पीते थे.


पहले तो वो पापा के साथ बैठ गए, कुछ देर बाद मम्मी आटा गूंथने लगीं तो चाचा जी भी आग सेंकने लगे.


पापा भाई को पढ़ाने में व्यस्त थे. चाचा पहले तो दूर बैठे, जब मम्मी ने आटा गूंथ लिया और रोटी बनाने के लिए चूल्हे की तरफ बैठीं तो चाचा जी भी चिपक कर बैठ गए.


वो बोलने लगे- आज तो ओलों की वजह से ठंड बढ़ गयी है. मम्मी- हां वो तो है.


मैं उधर से मम्मी की चुत देख रहा था जहां से मैंने सलवार फाड़ रखी थी. पर वो कम फटी हुई थी, तो कुछ ख़ास दिख नहीं रहा था.


चाचा अपना हाथ मम्मी के सलवार के अन्दर डालना चाहते थे तो उन्होंने मम्मी को इशारा किया.


मम्मी उठीं तो चाचा ने हाथ हटा दिया.


उठ कर मम्मी ने सामने से रोटी वाली मिट्टी के तवे को उतार दिया और अपना नाड़ा भी ढीला करके बैठ गईं. अब चाचा का हाथ मम्मी की चुत पर आ गया था.


जैसे ही चाचा की उंगली के कारण आवाज आती, मम्मी हिल जातीं, उनकी चूड़ियां आवाज को दबा देतीं.


कुछ देर तक वो दोनों ऐसा करते रहे.


मेरा लंड खड़ा हो गया था तो मैं उठ कर वहां से चला गया जहां पर मम्मी के उतारे हुए कपड़े रखे थे. मैं उनके करीब जाकर मुठ मारने लगा.


जब मेरा रस निकल गया तो मैं वापस आकर बैठ गया. अब तक उनका भी हो चुका था.


चाचा हाथ बाहर निकल कर सूंघ रहे थे और कुछ बोल रहे थे जिस पर मम्मी हंस रही थीं.


मुझे आता देख कर वो दोनों चुप हो गए.


कुछ देर बाद चाचा जाने को हुए. तो मम्मी बोलीं- खाना खाकर चले जाना. चाचा बोले- नहीं, घर पर बना होगा.


चाचा जी के घर में दो बहनें थीं और दादी थीं, चाचा के पापा नहीं थे.


वे बचपन से ही बहुत तगड़े थे.


जब चाचा चले गए तो मम्मी बोलीं- पापा और भाई को बोलो, आकर खाना खा लें. मैंने पापा और भाई को बुलाने के लिए आवाज लगाई.


तब मम्मी नाड़ा बांधने लगी थीं.


पापा आए और खाना खाने लगे.


फिर मैं अपनी खाट पर लेट गया. भाई भी मम्मी के बिस्तर पर लेट गया. पापा भी अपनी जगह पर लेट गए और वो मम्मी से बात कर रहे थे.


मैं सोने का नाटक कर रहा था.


जब पापा मम्मी को लगा कि मैं सो गया, तो वो धीमी आवाज में बात करने लगे.


उनके बीच कुछ पैसे की बात हो रही थी. मम्मी बोलीं- मैं अपने आप देख लूंगी, आप टेंशन मत लो. तब पापा बोले- ठीक है.


फिर मम्मी उठ कर मूतने गईं. वो वापस आईं और दरवाजा बंद करती हुई बोलीं- आज मेरा मन कर रहा है. पापा बोले- आ जा.


तो मम्मी बोलीं- पहले मेरे शरीर पर ये गर्म तेल लगा दो. मम्मी ने तेल हल्का गर्म किया था.


पापा ने कटोरी हाथ में ले ली और मम्मी बैठ गईं.


पापा- कमीज तो उतारो. मम्मी- ठंड लग रही है.


पापा- तो क्या सूट पर ही लगा दूँ तेल?


मम्मी ने पहले लालटेन हल्की कर दी फिर सूट उतार दिया.


पापा ने पहले पीठ पर तेल लगाया, फिर मम्मी से कहा- सलवार उतारो.


तो मम्मी ने सलवार घुटनों तक कर दी. पापा तेल लगाने में मस्त थे, मैं भी चुपके से देख रहा था.


अब मम्मी पीठ के बल लेट गईं. मम्मी के दूध छोटे आकार के थे, पापा तेल से मालिश कर रहे थे.


जैसे ही वो चुत पर हाथ ले गए, तो वो गीली थी.


पापा बोले- ये गीली कैसे हो गई है? तो मम्मी बोलीं- तब से गर्म कर रहे हो … तो गीली नहीं होगी?


पापा चुप हो गए.


फिर पापा ने अपना पजामा उतार कर अपना लंड चुत पर सैट कर दिया और चुदाई शुरू हो गयी.


कुछ देर बाद पापा साइड में लेट गए. मम्मी ने लालटेन बंद कर दी.


मैं चुपके से उठा और मम्मी की चुत के सामने अपना मुँह लेकर गया तो उसमें अजीब सी महक आ रही थी. मैं वापस सो गया.


कुछ दिन सब ठीक रहा.


फिर एक दिन मम्मी पापा और छोटा भाई मामा की शादी में चले गए, मुझे हल लगाने वाले चाचा के घर छोड़ दिया.


पहले दिन सब ठीक रहा.


सुबह में उठा और नहाने गया, तो वहां पर चाचा की बहन के कपड़े पड़े थे. मैं सलवार ढूंढ कर उसे सूंघ कर मुठ मार रहा था तभी चाचा जी की बहन गर्म पानी लेकर आ गयी.


मैंने उसकी सलवार छोड़ दी, पर ये ध्यान नहीं रहा कि मेरा लंड खड़ा हो रहा है.


दीदी ने लंड देख लिया पर वो चली गयी.


मैंने मुठ मारी और रस सलवार पर गिरा दिया, फिर नहा कर चला गया.


दिन भर बैठा रहा, रात को चाचा कहीं चले गए तो उनकी बहन बोली- आज तू मेरे साथ सो जा!


मैं मान गया.


हम दोनों करीब 9 बजे सोए. दीदी मुझसे बात कर रही थी.


जैसे चाचा मम्मी के सलवार में हाथ डालते थे, वैसे ही मेरा हाथ भी दीदी की सलवार पर चला गया. पर मैंने उसे अन्दर नहीं डाला.


दीदी कुछ नहीं बोली, बस बात करती रही. मेरा हाथ उसकी चुत पर था तो मैं गर्म हो रहा था.


फिर दीदी उठी और लालटेन के पास गई. वो बोली- हम अंधेरे में भी बात कर सकते हैं. मैं- हां लालटेन बंद कर दो.


इस पर उसकी छोटी बहन बोली- नहीं रहने दो. मगर दीदी ने बंद कर दी और वो बिस्तर पर आ गई.


वो पहले पीछे की साइड में लेटी हुई थी. मगर अब उसने मुझसे कहा- तू पीछे आ जा.


मैं पीछे हुआ तो दीदी ने अपनी सलवार हल्की से ढीली कर दी और लेट गयी.


वो फिर से बात करने लगी. मैं भी बात कर रहा था.


इतने में मेरा हाथ फिर से आगे हुआ और दीदी की सलवार तक पहुंच गया.


मैं अपना हाथ धीरे से हिला रहा था पर दीदी बात कर रही थी.


मैंने अपना हाथ थोड़ा ऊपर की ओर किया तो मेरे हाथ पर नाड़ा आ गया था.


मैंने धीरे से दीदी का नाड़ा खोल दिया.


इतने में दीदी बोली- तुम दोनों बात करो, मैं तो सो रही हूँ.


उसने रजाई में मुँह डाल दिया.


मैं और छोटी बहन बात करने में लगे थे. मेरा हाथ बड़ी दीदी के सलवार के अन्दर जाने ही वाला था कि दीदी हल्की सी हिली और उसने अपनी सलवार नीचे कर दी. मैंने झटके से हाथ पीछे किया और बात करते करते आगे ले गया.


दीदी ने सलवार नीचे कर दी थी और उसकी चुत हल्की गीली हो गई थी.


मैंने चुत के करीब उंगली लगाई तो दीदी ने दोनों टांगों को आपस में चिपका दिया.


मैं हल्के हाथ से दीदी की चुत सहलाने लगा. दीदी की सांसें तेज होने लगीं.


मैं भी छोटी बहन से बोला- मैं भी अब सो रहा हूँ. ये कह कर मैंने रजाई को मुँह तक ओढ़ लिया.


कुछ देर में दीदी का पानी निकल गया तो दीदी मेरी तरफ पीठ करके लेट गईं पर उसने सलवार नहीं बांधी थी.


अब मैंने अपना पजामा नीचे किया और अपना लंड दीदी की गांड पर लगा दिया.


दीदी झट से रजाई मुँह से हटा कर छोटी बहन से बोली- सो गई तू? छोटी बहन ने कुछ जवाब नहीं दिया.


अब दीदी का मुँह रजाई के बाहर था. मेरा लंड अभी भी दीदी की गांड पर था.


दीदी ने अपना हाथ मेरे लंड पर लगाया और करवट लेकर बिस्तर के अन्दर चली गई.


मेरा लंड हाथ में ही था. मुझे महसूस हुआ कि मेरे लंड पर कुछ गर्म गर्म लग रहा है. मैंने अपने हाथ को लंड की तरफ किया, तो पाया कि दीदी ने मेरे लंड को मुँह से लगा रखा था.


मुझे लंड चुसवाने में मजा आ रहा था. मैं चुपचाप लेटा रहा.


कुछ देर बाद दीदी ऊपर आ गयी.


अब मेरा लंड उसने अपनी चुत पर लगाया और अन्दर डालने की कोशिश करने लगी. पर लंड चुत में नहीं गया.


दीदी ने बहुत कोशिश की पर अन्दर नहीं गया. जब दीदी हार गयी, तब उसने फिर से अपनी गांड मेरी तरफ कर दी और सो गई.


मैं भी गांड पर लंड लगा कर सो गया.


सुबह मैं उठा तो दीदी पहले ही उठ गई थी. मेरा पजामा भी ऊपर था. दादी और बड़ी दीदी उठ गई थीं पर छोटी बहन सो रही थी.


मैं जगा तो बड़ी दीदी बोली- उसे भी जगा दे और आ जा … चाय पी ले.


मैं छोटी बहन को जगा रहा था पर वो नहीं उठ रही थी. मैंने उसकी रजाई खींची तो उसने फिर से ओढ़ ली.


अब मैंने अपना हाथ उसके दूध पर लगाया तो वो दूसरी तरफ घूम गई. मैंने गांड पर हाथ लगाया पर वो नहीं उठी.


अब मेरा हाथ उसकी चुत पर चला गया. छोटी बहन मजा लेने लगी … पर उठी नहीं.


तभी दादी आ गईं, तो छोटी दीदी उठ गई.


फिर हम सबने चाय पी.


चाय पीकर दीदी खेत के लिए चली गयी.


दस बजे करीब दादी बोलीं- जा दीदी को चाय नाश्ता दे आ!


मैं चाय और रोटी लेकर खेत चला गया. दीदी घास काट रही थी.


मैं गया और दीदी से बोला- दीदी, चाय नाश्ता कर लो. दीदी- ठीक है आती हूँ.


वो घास छोड़ कर नाश्ते के लिए बैठ गयी. मैं भी बैठ गया. दीदी ने नाश्ता किया.


फिर मैं केतली उठा कर घर आ गया. घर पर कोई नहीं था.


मैंने केतली रख दी और नल की तरफ आ गया.


वहां पर दादी नहा रही थीं. मैं चुपके से देखने लगा.


दादी अपनी चुत रगड़ कर धो रही थीं. दादी के दूध बहुत बड़े थे.


कुछ देर बाद मैं वहां से घर में आ गया और बैठ गया.


दादी कुछ देर बाद सिर्फ पेटीकोट में ही घर में आ गयी थीं. मैं देखता रह गया.


दादी की गांड भी मेरी मम्मी से बड़ी थी. दादी बहुत भरी हुई माल थीं.


फिर दादी अन्दर गईं और साड़ी पहन कर आ गईं.


दादी ने मुझसे कहा- भात अभी खाएगा या जब सब आ जाएंगे तब खाएगा? मैं- सबके साथ खा लूंगा.


दादी अन्दर चली गईं.


मैं भी अन्दर गया तो देखा दादी अपनी चुत पर सरसों का तेल लगा रही थीं.


मैं दरवाजे पर ही बैठ गया.


तभी चाचा और छोटी दीदी आ गए. फिर हम सबने खाना खाया.


वो लोग अपने अपने कामों में लग गए.


बड़ी दीदी करीब 5 बजे शाम को घर आई. उन्होंने खाना खाया.


उस रात को हमारे गांव में रात को जागरण था तो दादी ने जल्दी खाना बना दिया.


चाचा तो पहले ही जा चुके थे. दादी और छोटी बहन भी खाकर चले गए.


बड़ी दीदी बोली- तू और मैं बाद में चलेंगे. मैंने हां कर दी.


दीदी ने खाकर बर्तन साफ किए, फिर बोली- मेरे तो आज हाथ पैरों में दर्द हो रहा है. एक काम कर तू भी जा, मैं लेट जाती हूं. मैंने कहा- इतनी ठंड में मेरा भी मन नहीं हो रहा.


तो दीदी बोली- चल, फिर सो जाते हैं. मैं बिस्तर में चला गया.


दीदी मूतने गई, फिर आ गयी. उसने दरवाजा बंद कर दिया.


पहले दादी और छोटी बहन का बिस्तर ठीक किया, फिर मेरे बगल में बैठ गयी.


उसने लालटेन की रोशनी हल्की कर दी थी.


फिर वो बोली- आज तो बहुत काम किया है … एक पूरे खेत की घास काट ली. मैं- हां आज तुम खाना खाने भी नहीं आई.


दीदी बोली- हां. वो बिस्तर पर आ गयी, उसने रजाई में पैर डाल लिए और बैठ गयी.


फिर बोली- एक काम कर! मैं- क्या?


दीदी- तू कर लेगा? मैं- हां दीदी.


वो बोली- तू रहने दे.


फिर कुछ देर बाद उसने अपना नाड़ा खोला और बोली- यहां पर एक दाना हो रहा है … जरा चैक तो कर क्या है?


मैंने लालटेन उठा कर देखा कि दीदी की गांड पर एक दाना हो रहा था.


दीदी बोली- आज पता नहीं, किसी कीड़े ने काट लिया. मैं- हां, पूरा लाल हो रखा है.


दीदी ने लालटेन नीचे रखी और लेट गयी. दीदी की नंगी गांड देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया था.


दीदी बोली- चल सो जा. मैं लेट गया.


कुछ देर बाद दीदी ने मेरे पजामा में अपना हाथ डाला तो मेरा लंड तो खड़ा था ही.


मैंने पजामा नीचे कर दिया.


दीदी बोली- किसी को मत बताना. मैं- ठीक है दी.


दीदी बोली- इसे मेरे अन्दर डाल. मैं- ठीक है.


मैं उठा और दीदी की सलवार को पूरी उतार दी.


मैंने दीदी की टांग उठा कर अपना लंड चुत पर लगाया और अन्दर डालने की कोशिश करने लगा. पर लंड चुत में जा ही नहीं रहा था.


फिर दीदी ने लंड पकड़ा और चुत पर लगा दिया.


वो मुझसे बोली- अब धक्का मार. मैंने जोर से धक्का मारा तो मेरा लंड अन्दर चला गया. दीदी को भी दर्द हुआ और मुझे भी.


कुछ देर रुक कर दीदी बोली- अब हिल. मैं हिलने लगा. चुदाई चालू हो गई.


अब मैं दीदी की चुत चुदाई जोरों से कर रहा था.


दीदी चुदती हुई बोली- तुझे आता है ये? मैं- नहीं, पर देखा है.


दीदी- अच्छा. मैं- हां.


दीदी- कर जल्दी जल्दी … मजा आ रहा है. मैं- ठीक है.


मैं चुदाई करता रहा. दस मिनट बाद मैं झड़ गया और दीदी के ऊपर ही लेट गया.


दीदी बोली- उठ, नीचे देख … खून तो नहीं आया. मैंने लालटेन उठा कर देखा, खून तो नहीं … पर सफेद झाग बना था.


फिर मैं भी लेट गया. मुझे गहरी नींद आ गई.


आज मैंने अपनी बड़ी दीदी की चुदाई कर ली थी. ये रिश्ते में मेरी बुआ लगती थी लेकिन हम उम्र होने के कारण मैं उसे दीदी ही कहता था.


ये गाँव की लड़की की चूत चुदाई की सच्ची कहानी है मैंने इसमें कोई मसाला नहीं मिलाया है, जस का तस लिख दिया है. मुझे उम्मीद है कि आपको सेक्स कहानी पसंद आ रही होगी. मुझे मेल करें.


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गाँव की लड़की की चूत चुदाई कहानी का अगला भाग: पहाड़ी गांव में देसी चूत चुदाई के किस्से- 4


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