जेठ जी संग चुत चुदाई का मजा- 1

सविता सिंह

12-11-2020

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जेठ बहू सेक्स की कहानी में पढ़े कि मेरे जेठ जी तलाक के बाद हमारे साथ रहते थे. एक रोज मैं उनका कच्छा धो रही थी. तो उसमें वीर्य लगा हुआ था. मैं उत्तेजित हो गयी.


दोस्तो, मैं सविता सिंह एक बार फिर से आपके लिए एक और सेक्स कहानी लेकर हाजिर हूँ. मेरी पिछली कहानी थी: शहर की चुदक्कड़ बहू मेरी आज की जेठ बहू सेक्स की कहानी में मैंने इंसान की जिन्दगी की सच्चाई लेकर कुछ रंगीन बातें लिखी हैं.


ये रंगीनियां जिनकी हैं, वो आप उनकी ही ज़ुबानी पढ़ कर एन्जॉय कीजिए … और हां, मेल करना ना भूलें.


मेरा नाम अनुराधा है. मैं नागपुर की रहने वाली हूँ. मेरी उम्र 34 साल है. मेरी शादी हुए 7 साल हो गए हैं और मेरे 2 बच्चे भी हैं. एक बेटा 3 साल का है और बेटी 2 साल की है जो अभी भी मेरा दूध पीती है.


मेरा रंग सांवला है और मेरी फिगर 38-32-40 की है. मेरा जिस्म शुरू से भरा हुआ था मगर शादी के बाद मेरा बदन और ज्यादा निखर गया.


शादी से पहले मैंने अपने जिस्म की आग सिर्फ एक ही मर्द से ठंडी करवाई थी, वो मेरा उस समय बॉयफ्रेंड था. उसके बाद तो सिर्फ हस्बैंड ने मेरी चुत चोदकर मेरे जिस्म की आग को शांत किया है.


शायद ये बात ज्यादातर महिलाओं के साथ ही होती है कि शादी के कुछ टाइम तक तो पति अपनी पत्नियों को बहुत वक्त देते हैं. हर टाइम बस उनकी चुदाई करते हैं. मगर जहां दो बच्चे पैदा हुए, उसके बाद तो चुदाई सिर्फ नाम मात्र की ही रह जाती है.


मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ.


हमारी फैमिली में सिर्फ हस्बैंड के बड़े भाई और भाभी हैं. वो भी अलग ही रहते हैं. इसीलिए हम लोगों ने बिना रोक-टोक के हर जगह चुदाई की.


मगर बच्चे होने के बाद चुदाई बहुत कम कर हो गई. मेरे अन्दर की आग और वासना मुझसे बर्दाश्त नहीं हुई. इसलिए जब हस्बैंड जॉब पर चले जाते और बच्चे सो रहे होते, तो मैं घर में नंगी रहती और हमेशा अपनी चूत रगड़ती रहती.


कभी मैं अपनी चुत में मोमबत्ती डालती, तो कभी बैंगन से चूत चोद कर अपनी वासना शांत कर लेती थी. शायद इसीलिए नतीजा ये हुआ कि मैं अपने जेठ जी की बांहों में चली गयी.


वो सब कैसे हुआ, आज की सेक्स कहानी में मैं इसी को लिख रही हूँ.


मेरे जेठ जी की उम्र 38 साल है, वो दिखने में औसत कदकाठी के मर्द हैं. उनका पेट हल्का सा निकला हुआ है.


उनकी खासियत ये है कि किसी को भी अपनी बातों में फंसा लेते हैं. शायद इसीलिए उनके बाहर इतने चक्कर चल रहे थे. मैं जेठ जी को हमेशा भाई साहब बोलती रही हूँ.


ये बात एक साल पहले की है. भाई साहब का डाइवोर्स हो रहा था. इसका कारण भाई साहब बाहर बहुत मुँह मारा करते थे, जिसका पता मेरी जेठानी को चल गया था.


मेरी जेठानी स्वभाव की बहुत अच्छी हैं. उन्होंने भाई साहब को पहले भी कई बार पकड़ा, मगर अपने बच्चों की खातिर माफ़ कर दिया. मगर जब भाई साहब अपनी हरकतों से बाज नहीं आए, तो उन्होंने डाइवोर्स ले लिया.


भाई साहब पर इस बात का भी कोई ज्यादा असर नहीं हुआ. वो वैसे ही अय्याशी करते रहे.


एक रात मेरे पति के पास कॉल आया कि भाई साहब का एक्सीडेंट हो गया. मेरे पति और मैं बहुत डर गए. मेरे पति तुरंत हॉस्पिटल गए, तो देखा भाई साहब के हाथ और पैर में प्लास्टर लगा हुआ था और सर पर पट्टी बंधी थी.


दो दिन के बाद भाई साहब को होश आया, तब पता चला कि भाई साहब की आंखें भी चली गयी थीं. उन्हें दिखाई नहीं दे रहा था.


भाई साहब ये जानते ही रोने लगे … तब उन्हें मेरे हस्बैंड ने संभाला.


एक महीने बाद भाई साहब घर आ गए. कुछ छोटी मोटी चोटें और प्लास्टर अब भी थे. अब भाई साहब हमारे साथ ही रहने लगे थे.


भाई साहब का सारा टाइम बस कमरे में रह कर बीतने लगा, वो कमरे में अकेले रोते रहते.


मैं और हस्बैंड उन्हें बहुत समझाते, मगर आंखों की रोशनी जाने का दर्द इतना गहरा था कि उनको सम्भलने में काफी वक्त लग गया.


कुछ दिनों बाद भाई साहब ने सब कुछ ईश्वर की मर्जी मान कर खुद को समझा लिया.


भाई साहब के एक्सीडेंट का असर मेरी सेक्स लाइफ पर और ज्यादा हो गया. जिसका कारण ये था कि अब मेरे हस्बैंड को उनके हिस्से का काम भी करना पड़ता था.


हम दोनों को सेक्स के लिए जरा भी वक्त नहीं मिल पाता था. अब हमारे बीच सेक्स एक या दो हफ्ते में एक बार ही हो पाता था.


भाई साहब पर मेरी नज़र तब पड़ी, जब एक रोज मैं उनका कच्छा धो रही थी.


उनका कच्छा लंड वाली जगह से काफी टाइट था. मैंने जब उसे देखा, तो समझ गई कि ये भाई साहब के लंड के पानी की वजह से है.


मैंने उसे सूंघा, तो लंड के पानी और मूत की तेज गंध मेरी नाक में घुस गयी और मेरा हाथ खुद बा खुद अपने मम्मों पर चला गया. मैं वहीं अपने दूध मसलने लगी, जिससे मेरा दूध निकल आया.


थोड़ी देर बाद मैं कपड़े धोकर उठी और भाई साहब के रूम में गयी. वहां मैं उनकी चादर बदल रही थी, तो उस पर भी दाग लगे हुए थे. मैं जल्दी से चादर बदल कर वापस आ गयी.


दोपहर के टाइम बच्चे सो रहे थे और भाई साहब भी अपने कमरे में थे. मैं नंगी होकर अपनी चूत सहला रही थी. मुझे बार बार भाई साहब के लंड के पानी का दाग याद आ रहा था.


मैं अपनी चूत सहलाते हुए सोच रही थी कि क्या भाई साहब भी मेरी तरह अपना लंड हिला कर खुद को शांत करते हैं.


मेरा मन भाई साहब के लंड को देखने का करने लगा और मैं नंगी ही उनके कमरे के पास चली गयी.


मैंने उनके दरवाजे का लॉक हल्के से घुमा कर खोला और अन्दर घुस गयी.


अन्दर देखा, तो भाई साहब सो रहे थे. उस वक़्त भाई साहब ने बनियान और कच्छा पहना हुआ था.


भाई साहब तो सो रहे थे … मगर उनका लंड कच्छे में से हल्का हल्का फूला सा दिख रहा था.


मैं भाई साहब के सामने नंगी खड़ी होकर अपनी चूत मसल रही थी और उनका लंड निहार रही थी. कुछ ही देर में मेरा पानी निकल गया और मैं अपने कमरे में आकर सो गयी.


कुछ दिन तक मैं भाई साहब पर नज़र रखती रही, मगर मैं उन्हें मुठ मारते नहीं देख पायी.


मैं जब भी उनकी चादर बदलती, तो मुझे उनके लंड के पानी के दाग दिखाई दे जाते, जिन्हें मैं हमेशा सूंघकर हस्तमैथुन कर लिया करती थी.


एक दिन भाग्य ने मेरा साथ दिया. मैं दोपहर का खाना लगाकर भाई साहब को बुलाने गयी.


मैं चुपचाप उनके रूम गयी थी. भाई साहब रूम में नहीं थी. तभी मैं उन्हें देखने टॉयलेट में गयी.


मेरे घर के सब कमरों में टॉयलेट अटैच हैं. जैसे ही मैंने अन्दर झाँका, तो देखा कि भाई साहब का कच्छा नीचे गिरा हुआ था और वो मुठ मार रहे थे.


भाई साहब का लंड पूरा टाइट खड़ा हुआ था और भाई साहब अपने हाथ पर थूक कर उसे गीला कर रहे थे.


भाई साहब का लंड मेरे हस्बैंड जैसा ही था … साढ़े 6 इंच के आस पास. मगर थूक से गीला होकर वो मेरे हस्बैंड से ज्यादा टाइट और विकराल लग रहा था.


मैं वहीं खड़ी होकर उन्हें मुठ मारते हुए देख रही थी और अपनी चूत सहला रही थी.


थोड़ी ही देर में उनका पानी निकल गया. ज्यादातर लंड का पानी टॉयलेट में चला गया … मगर कुछ वहीं गिर गया. मैं वहां से हट गयी.


एक दो पल बाद भाई साहब रूम में आए.


मैं वहीं खड़ी थी. भाई साहब को शायद लगा कि रूम में कोई है. उन्होंने मुझे आवाज दी- कौन … अनुराधा!


मैंने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि मैं तो उनके लंड को देख रही थी जो पानी निकालने के बाद भी उनके कच्छे में खड़ा दिख रहा था.


तभी भाई साहब ने मेरे बेटे को आवाज लगायी, मैं तुरंत दबे पांव कुर्सी के पीछे छिप गयी.


मेरा बेटा अन्दर आया और अपने ताऊ जी को बाहर ले गया.


भाई साहब के बाहर जाते ही मैं टॉयलेट में घुस गयी और उनके लंड के पानी की बूंद को उंगली से उठा कर सूंघने लगी. जेठ जी के लंड का पानी ऐसा लग रहा था … जैसे कोई गोंद हो.


मैंने उसे सूंघा … तो बहुत तेज गंध थी. मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसे चाट लिया. भाईसाहब के वीर्य का स्वाद मक्खन जैसा था.


मैं अभी भाई साहब के पानी को चाटकर अपनी चूत सहला ही रही थी कि तभी बाहर से भाई साहब के बुलाने की आवाज आयी. बाहर जाते हुए मैं यही सोच रही थी कि कैसे मैं भाई साहब को रिझाऊं. वो देख नहीं सकते हैं … तो कैसे वो जानेंगे कि मैं क्या चाहती हूँ.


जैसे ही मैं रूम से बाहर निकली, दरवाजे भिड़ने की आवाज़ हो गयी.


भाई साहब आवाज सुनकर बोल पड़े- अनुराधा … क्या अभी तुम मेरे कमरे थी? मेरे मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी. मैं बोलने लगी- व्..वो भाई साहब मैं … व्..वो अभी ही गयी थी आपको देखने … मगर आप इधर आ गए थे.


मैं भाई साहब को देखने लगी थी. उनको देखने से साफ़ लग रहा था, जैसे वो जान गए हैं कि अभी मैं ही उनके रूम में थी.


फिर हम सबने खाना खाया. मैं अपनी बेटी को दूध पिलाने लगी और बेटा रूम में जाकर खेलने लगा.


भाई साहब बोले- अनुराधा, मुझे कमरे में ले चलो.


मैं उनका उनका हाथ पकड़ कर रूम में ले गयी.


भाई साहब बोले- अनुराधा गेट बंद कर देना. मैंने कहा- ठीक है भाई साहब. आप आराम करो … कुछ चाहिए, तो आवाज दे देना.


मैंने गेट खोला और लगा दिया … मगर मैं बाहर नहीं गयी. गेट बंद होने की आवाज से भाई साहब को लगा कि मैं बाहर चली गयी हूँ. मगर मैं अन्दर ही थी.


भाई साहब ने टी-शर्ट और निक्कर को उतार दिया. अब भाई साहब सिर्फ कच्छे में थे. उनका लंड अभी भी खड़ा था.


जेठ जी बुदबुदाए ‘अबे साले बैठ क्यों नहीं जाता है तू … साला जब देखो खड़ा हो जाता है.’


भाई साहब लंड सहलाते हुए बेड पर लेट गए. उन्होंने अपने कच्छे का नाड़ा खोल कर अपना लंड बाहर निकाल लिया और उसे सहलाने लगे.


मैं वहीं खड़े उन्हें लंड सहलाते हुए देख रही थी.


वो लंड की खाल को ऊपर नीचे कर रहे थे जिससे उनका सुपारा बाहर आता … फिर अन्दर चला जाता. मेरा मन तो कर रहा था कि अभी ही उनका लंड पकड़ कर चूस लूं.


तभी मेरे बेटे की आवाज आयी, वो मुझे बुला रहा था.


मैं चुपचाप निकल जाना चाहती थी. इससे पहले बेटा भाई साहब के रूम में आता, मैंने हल्के से लॉक को घुमाकर दरवाजा खोला.


मगर दरवाजा खुलने की हल्की सी आवाज भाई साहब ने सुन ली. भाई साहब ने तुरंत की गर्दन घुमाई तो मैं वहीं खड़ी थी. भाई साहब दरवाजे की तरफ मुँह करके मुस्कुरा रहे थे.


मुझे लगा भाई साहब को पता चल गया है कि मैं उन्हें लंड सहलाते हुए देख रही थी.


मैं बिना कुछ बोले जल्दी से उनके कमरे से बाहर निकल गई.


उस दिन मैंने अपनी चूत में बैंगन डालकर दो बार खुद को शांत किया.


अगली सुबह एक नया ही नज़ारा मेरा इंतजार कर रहा था.


हर सुबह भाई साहब जल्दी उठ जाते थे. मगर आज वो सो रहे थे और उनका लंड कच्छे मैं तम्बू बनकर खड़ा था.


इतने महीनों में जब से भाई साहब रह रहे हैं, ये पहली बार हुआ था. मेरी नज़र तो उनके लंड से हट ही नहीं रही थी.


तभी मैंने भाई साहब को हिला कर जगाया. भाई साहब ने उठते ही मुझे गुड मॉर्निंग कहा और उसके बाद उन्होंने अपना लंड सहला कर उसे एडजस्ट किया. ऐसा करते हुए वो उनका चेहरा ऐसे था जैसे मुझे ही देख रहे थे. मैं वहां से चली गयी.


मेरे मन में वही नज़ारा घूम रहा था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उन्होंने पहली बार ऐसा कुछ किया था और कुछ देर बाद मुझे इसका जवाब भी मिल गया.


मेरे पति जब उन्हें नाश्ते के लिए लेने गए, तो उन्होंने मना कर दिया. पूछने पर बोले कि बाद में करूंगा.


पति के जाने के बाद मैं काम करने लगी.


तभी भाई साहब की आवाज आयी- अनुराधा मेरे कपड़े निकाल दो. मैं तुरंत भाई साहब के कमरे में गयी, तो वो सिर्फ कच्छे में खड़े थे.


मेरी नज़र तो अब सिर्फ भाई साहब के लंड पर ही रहने लगी थी.


भाई साहब मेरी आहट पाकर बोले- अनुराधा मुझे बाथरूम में छोड़ दो और मेरे कपड़े भी वहीं टांग देना.


मैंने कपड़े एक हाथ में पकड़े और दूसरे हाथ से भाई साहब का हाथ पकड़ कर उन्हें बाथरूम में ले गयी.


उन्हें मैंने शॉवर के नीचे खड़ा कर दिया और उनका हाथ शॉवर लीवर पर रख दिया.


भाई साहब ने शॉवर चला दिया और नहाने लगे. उन्होंने मेरे जाने का इंतज़ार ही नहीं किया और अपना कच्छा निकाल दिया.


भाई साहब अपना लंड हिलाने लगे. उनका मुँह दरवाजे की तरफ था, जहां मैं खड़ी थी.


वो देख नहीं सकते थे मगर ऐसा लग रहा था, जैसे कह रहे हों कि ले अनुराधा चूस ले मेरा लंड … निकाल दे मेरा पानी.


उन्हें ऐसा करते देख कर मैं वहां से निकल गयी.


नहाने के बाद भाई साहब ने नाश्ता किया. फिर मैं अपने काम में लग गयी.


दोपहर का खाना खाना खाने के बाद बच्चे सो गए … मगर मुझे अब सब जगह भाई साहब का लंड दिख रहा था.


मेरा एक मन कह रहा था कि भाई साहब को पता चल गया है कि मैं उन्हें नंगा देखती हूँ. दूसरी तरफ एक मन कह रहा था कि ये मेरा वहम भी हो सकता है.


मैं नंगी लेटी अपनी चूचियों को सहलाते हुए यही सोच रही थी.


तभी मैं नंगी ही उठी और मेरे कदम खुद बा खुद भाई साहब के कमरे की तरफ चल दिए.


दरवाजा खोलकर मैं अन्दर गयी, तो देखा भाई साहब नंगे लेटे हुए थे और अपना लंड सहला रहे थे. जैसे उनको मेरे आने का ही इंतज़ार था.


आहट मिलते ही भाई साहब अपना लंड तेजी से हिलाने लगे … और मैं उनके सामने अपनी चूत रगड़ रही थी. कभी मैं अपने मम्मों को खुद चूस लेती.


ऐसा करने में एक अलग ही मज़ा आ रहा था.


भाई साहब भी अपने लंड पर तेज तेज हाथ चलाने लगे.


मैं अपने मुँह पर हाथ रख कर अपनी आवाज को रोकने का प्रयास कर रही थी, जिससे मेरी उपस्थिति का आभास उन्हें न हो पाए.


हालांकि मेरा मन ये सोच चुका था कि उन्हें मालूम पड़ जाए, पड़ जाए.


कुछ मिनट में भाई साहब के लंड का पानी निकल गया और मेरा भी.


भाई साहब को मेरे होने का अहसास था, मगर वो कुछ कहते नहीं थे और न ही मैं.


कुछ दिनों तक ऐसा चलता रहा. हम दोनों रोज ऐसा करते थे.


कहते हैं न कि इंसान कितना भी खामोश रह ले, मगर उसकी वासना उसे बोलने के लिए मजबूर कर देती है.


एक दिन वही हुआ.


मैं रोज की तरह दोपहर में भाई साहब के कमरे में गयी. मैंने और भाई साहब ने अपना अपना पानी निकाल दिया.


मैं जैसे ही उनके कमरे से जाने लगी, तो भाई साहब की आवाज आई- अनुराधा!


उनके मुँह से अपना नाम सुनकर मैं वहीं खड़ी हो गयी.


भाई साहब बोले- अनुराधा, मैं जानता हूँ कि तुम यहीं हो. मुझे पहले दिन ही पता चल गया था मगर मुझे लगा वहम है. फिर उस दिन दरवाजे की आवाज से मुझे पक्का हो गया कि तुम यहीं थी. मैं अंधा हुआ हूँ … बहरा नहीं. अनुराधा मैं देख नहीं सकता इसीलिए ऐसा करना पड़ रहा है. मैं जानता हूँ कि तुम्हारी भी कोई मज़बूरी है … इसीलिए तुम यहां हो. अनुराधा क्या हम दोनों एक दूसरे को जिस्मानी खुशी नहीं दे सकते हैं?


मैं भाई साहब की बातें सुन रही थी … मगर कोई जवाब नहीं दे पा रही थी.


भाई साहब बोले- अनुराधा, ये बात हमारे बीच ही रहेगी. अब सब तुम्हारे फैसले पर हैं … अगर तुम्हारी न है, तो मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है. मैं ऐसे भी खुश हूँ. तुम्हारा मेरे पास होना ही मेरे लिए बहुत है.


मैं बिना कुछ बोले वहां से चली गयी, मगर भाई साहब का कहा एक एक शब्द मेरे कानों में गूंज रहा था.


शादी के बाद मैंने पति को कभी धोखा नहीं दिया था. मैं फैसला नहीं कर पा रही थी इसीलिए मैंने इसका अंजाम कल पर छोड़ दिया.


अपने जेठ जी के साथ चुत चुदाई का फैसला लेने में मुझे काफी सोच विचार करना पड़ रहा था. अगली बार की सेक्स कहानी में मैं आपको अपने जेठ के संग अपनी चुत चुदाई की कहानी लिखूंगी.


आप सविता सिंह जी की मेल पर मुझे लिख कर बताएं कि जेठ बहू सेक्स की कहानी कैसी लग रही है. [email protected]


जेठ बहू सेक्स की कहानी का अगला भाग: जेठ जी संग चुत चुदाई का मजा- 2


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