मोहल्ले के गुण्डे के बड़े लंड से चुदाई का मजा- 1

अनु पण्डित

09-01-2023

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मुझे कोई मिल गया मजा देने वाला … मेरा पति मुझे ज्यादा नहीं चोदता था तो मुझे अपना जीवन अधूरा सा लगता था. तभी मोहल्ले के एक बदमाश की नजर मुझपर पड़ी.


यह कहानी सुनें.


आप सभी को नमस्ते, मैं आप सबको अपने बारे में अनु नाम से ज्यादा कुछ नहीं बता सकती क्योंकि मैं अपनी पहचान गुप्त रखना चाहती हूँ.


मैं बस कुछ बातें बताती हूँ, जैसे कि मैं शादीशुदा हूँ और मैं अपने पति और बच्चों के साथ रहती हूँ. मेरा और मेरे पति का परिवार कहीं और रहता है.


अपनी बात करूं तो मेरा रंग गोरा है और मेरा शरीर हमेशा से ही काफ़ी खूबसूरत और उभार भरा है.


मैंने बाकी लड़कियों की तरह कभी कई लड़कों से दोस्ती नहीं रखी. मेरे माता-पिता काफ़ी सख्त थे और उन्हें मेरा कोई भी वैसा काम करना पसंद नहीं था, जो उन्हें अच्छा ना लगता हो. यही वजह थी कि मेरे पति मेरे जीवन में पहले मर्द थे.


मुझे पिछले कुछ समय में ही इस जगह मतलब अन्तर्वासना साईट के बारे में पता चला है, जहां लोग सेक्स की कहानियां लिखते हैं. मैंने कुछ सेक्स कहानी पढ़ीं और मुझे भी अपनी कहानी बताने का मन हुआ.


मुझे काफ़ी घबराहट हो रही है, पर काफ़ी सोचने के बाद बहुत हिम्मत करके मैं अपनी निजी बातें आप सबको बताने जा रही हूँ.


आज मैं जो घटना आपको बता रही हूँ, वो मेरे जीवन में मेरे पति के अलावा आने वाले दूसरे मर्द की है.


मेरी शादी के कुछ समय बाद से मुझे सब अधूरा सा लगता था. मेरे पति काम पर चले जाते और मैं घर पर अकेली रहती.


हमारे घर में हम दोनों के अलावा और कोई नहीं था.


पर बात वो नहीं थी. वक्त तो मैं अपना काट लेती थी और बात करने को पड़ोसी भी थे पर मुझे हमारी सेक्स लाइफ़ अधूरी लग रही थी. वो हमेशा काम में लगे रहते और काफ़ी थके भी रहते थे.


हम सेक्स बहुत कम करते थे.


हमारी शादी के 5 साल बाद भी हमें कोई बच्चा नहीं था. मेरा शरीर हमेशा तड़पता रहता था और इससे मैं काफ़ी बेचैन भी रहती थी.


हम कई-कई दिनों बाद सेक्स करते थे और तब जाकर मेरी तड़प थोड़ी शांत होती थी.


मेरा मन तो रोज़ सेक्स करने का होता था, पर मैं मन मार कर रह जाती थी.


मैं जब भी घर से बाहर जाया करती थी तो बाहर काफ़ी बदमाश घूमा करते थे.


हमारे यहां कई बदमाश और गुंडे हैं, जो पूरा दिन लोगों को परेशान करते रहते हैं. तो जब मैं बाहर जाती थी तो देखती थी कि वो बदमाश आती जाती लड़कियों को छेड़ते थे और लोगों के साथ मारपीट भी करते थे.


उन्हीं में से एक था तबरेज़, जिसे सभी लोग दारा भाई बोलते थे.


वो हमारे इलाके में बहुत जाना-माना आदमी है. वो एक तरह से सभी बदमाशों का लीडर था. इलाके में उसकी बहुत चलती थी. मुझे साथ की औरतों से पता चला कि वो बहुत बड़ा बदमाश है. पुलिस में भी उसकी अच्छी पहचान है इसलिए सभी कांड करके भी बच जाता है.


मैं जब अकेली या अपने पति के साथ बाहर जाती थी तो अकसर मुझे भी बदमाश छेड़ते थे और गंदी बातें करते थे.


मेरे पति इस सब पर ध्यान नहीं देते थे क्योंकि उन्हें इन बदमाशों के मुँह नहीं लगना था. मुझे ये सब बहुत बुरा लगता था.


ये दारा भी मुझे घूरता था लेकिन उस समय तक मैंने उस पर कुछ खास ध्यान नहीं दिया था. मेरे लिए वो बस उन बदमाशों में से एक था.


कुछ समय बाद वो मुझे कुछ बदला-बदला लगा.


पहले तो मैंने महसूस नहीं किया पर बाद में मैंने गौर किया कि अब बाहर जाने पर बदमाश मुझे छेड़ते नहीं थे.


मैंने इसके बारे में अपने पड़ोसियों से जब बात की और उन्हें बताया कि आजकल गुंडागर्दी घट गई है. तो उन्होंने कहा- बहन किस दुनिया में हो? कुछ नहीं बदला है.


उनकी बातों से साफ़ लग रहा था कि वो सब अभी भी बदमाशों से परेशान थीं. पर मुझे कोई नहीं छेड़ रहा था, सिवाय उस दारा के!


वैसे तो वो कुछ नहीं कहता था पर हमेशा मुझे घूरता रहता था. मुझे उसकी नजरों से कमीनापन छलकता दिखता था.


फिर धीरे-धीरे मेरा उस पर ध्यान जाने लगा था. वो काफ़ी आकर्षक था. वो अकसर मुझे देखता रहता था पर मैं अपनी आंखें चुरा कर आगे बढ़ जाती थी.


धीरे-धीरे मुझे ये बात महसूस होने लगी कि दारा कि नज़र मुझ पर टिकी है, शायद इसी लिए मुझे कोई नहीं छेड़ता. ना जाने क्यों पर धीरे-धीरे मेरा भी आकर्षण दारा की ओर होने लगा.


मैं दिन-रात ना चाहते हुए भी बस उसके बारे सोचते रहती. मुझे लगाने लगा कि कोई मिल गया मजा देने वाला! शायद मेरे पति के प्यार की तड़प के कारण ये हो रहा था.


मैं इसके बारे में किसी को बता भी नहीं सकती थी कि मुझे उसका मुझे देखना अच्छा लगने लगा था.


अब मैं उससे आंखें नहीं चुराती थी. मैं भी उसे मुझे देखने का पूरा मौका देने लगी और उससे थोड़ी बहुत आंखें मिलाने लगी.


दारा बहुत ऊंचा और हृष्ट-पुष्ट मर्द था. वो काफ़ी ताकतवर लगता था.


अब तो वो भीड़ भाड़ में मेरे करीब आने का मौका नहीं छोड़ता था. वो मुझे काफ़ी अच्छा लगने लगा था. उसे देखकर मैं कामुक हो जाती थी.


मैं जानती थी कि ये ठीक नहीं है पर मुझे ये अच्छा लग रहा था. हालांकि मैं संभलकर रह रही थी, मैं नहीं चाहती थी कि समाज में मेरा नाम खराब हो.


एक दिन मैं हमेशा कि तरह घर पर अकेली थी. घर के सभी काम करने के बाद मैं बेड पर लेटी हुई दारा के ही बारे में सोच रही थी.


अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाया.


मैंने खुद को ठीक किया और दरवाजा खोलने गई. जैसे मैंने दरवाजा खोला, मैं बाहर देखकर चौंक गई. बाहर दारा खड़ा था जो दरवाजा खटखटा रहा था.


मेरी सांसें थम सी गईं और दिल जोर-जोर से धड़कने लगा. मैं सोच में पड़ी थी कि वो यहां क्यों आया है.


तभी उसने एक डब्बा मेरे आगे किया और कहा कि ईद के मौके पर वो सबको सिवैयां बांट रहा है. मैं थोड़ा शांत हुई और मैंने ईद मुबारक बोल कर डब्बा ले लिया.


उस दिन पहली बार मैं उससे इतने करीब से मिल रही थी. हालांकि पहले भी वो मेरे करीब आया था, पर ऐसे आमने-सामने हम पहली बार ही मिले थे.


वो करीब से और भी ज्यादा आकर्षक लग रहा था. उसका शरीर किसी पहलवान की तरह बड़ा था और ऊंचाई में तो मैं उसकी छाती तक ही थी.


उसे देख कर मुझे कुछ हो रहा था. वो भी मुझे देखे जा रहा था.


मैं कई दिनों तक इस बारे में सोचती रही. ऐसे ही दिन बीतते रहे.


फिर एक दिन और आया. उस दिन मेरे पति रोज़ की तरह काम पर जा चुके थे और मैं घर पर अकेली थी.


मैं रसोई में काम कर रही थी, तभी दरवाजे पर कोई आया. मैंने जाकर दरवाजा खोला और देखा बाहर दारा खड़ा है.


मेरे मन मैं अन्दर मुझे खुशी सी हुई. मेरी ऐसी हालत थी कि मैं हर वक़्त उसे देखना चाहती थी.


वो अपने बाकी बदमाश दोस्तों के साथ किसी चीज़ का चंदा जमा कर रहा था और इस बार भी मेरे पास सिर्फ वो ही आया था.


उसने मुझसे कहा- मुझे पानी चाहिए.


मैं पानी लेने अन्दर गई और बाहर आई तो देखा कि वो अन्दर आकर बैठ गया था. तो मैं घबरा गई.


मैंने सोचा कि अगर किसी ने उसे मेरे साथ अकेले अन्दर देख लिया तो बातें बनाई जाएंगी.


पर मैंने खुद को शांत किया, उसके पास गई और उसे पानी का गिलास दे दिया. गिलास लेने के बहाने वो मुझे छूने लगा.


मुझे वो मन ही मन अच्छा लगता था पर मैं पूरी कोशिश करती थी कि उसे इस बात का अंदाजा ना हो. मैं नहीं चाहती थी कि एक गुंडे के साथ मेरा नाम बदनाम हो.


उसने पानी पिया और गिलास मुझे लौटा दिया.


वो मुझे अपनी हवस भरी नजरों से देख रहा था जो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. मैं गिलास लेकर वापस मुड़ी तो अचानक मेरा पल्लू अटका और सरक गया.


मैं सहम गई और मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. मुझे लगा कि दारा ने मेरा पल्लू खींचा है.


मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो मेरा पल्लू दारा ने नहीं खींचा था, वो तो बस फंस गया था.


मुझसे पहले दारा ने मेरा पल्लू छुड़ा लिया. वो मेरी तरफ़ आया. मैं सहमी हुई थी.


तभी बाहर से किसी ने उसे आवाज़ लगाई और वो पल्लू मेरे हाथ में देकर चला गया.


इस बात ने तो मेरी रातों की नींद उड़ा दी. मैं बस इसी बारे में सोचने लगी कि कोई मिल गया मुझे! ये बात मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रही थी. दिन-ब-दिन मेरी तड़प बढ़ती जा रही थी.


एक दिन मैं घर का सामान लेने के लिए अकेली ही बाज़ार चली गई. मैं वहां अपना सामान ले रही थी कि मेरी नज़र वहां भी दारा पर पड़ी. वो वहां भी मुझ पर नज़र रखे था.


उसे देखते ही मुझे वो दिन फिर याद आ गया. मैंने अपना सारा जरूरी सामान लिया और मैं वापस घर के लिए निकली.


वापस लौटने के लिए मुझे कोई रिक्शा नहीं मिल रहा था. इसलिए रिक्शा ढूंढते-ढूंढते मैं पैदल ही बाज़ार से थोड़ा बाहर आ गई.


तभी पीछे से दारा अपनी बाइक लेकर आया. वो मेरे पास आकर रुका. उसने मुझसे कहा- पैदल क्यों जा रही ही, आ जाओ मैं अपनी बाइक पर छोड़ दूँगा.


मैंने उससे कह दिया- नहीं, मैं खुद चली जाऊंगी. पर वो मुझे मनाने लगा.


मुझे डर था कि अगर किसी ने मुझे ऐसे देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी. उसे शायद ये बात समझ आ गई कि मैं किसी के देखने के डर से उसके साथ नहीं बैठ रही हूँ, तो उसने मुझसे कहा कि वो मुझे घर से कुछ दूर पहले ही उतार देगा.


रिक्शा मिल नहीं रहा था और उस जगह मुझे कोई जानता भी नहीं था, इसलिए मैं उसके साथ बैठ गई. मैंने बचाव के लिए अपना चेहरा भी ढक लिया ताकि मुझे कोई ना पहचान पाए.


मेरे पास सामान था तो मैं ठीक से बैठ नहीं पा रही थी. उसने मुझसे कहा कि आगे रास्ता खराब है, इसलिए मुझे पकड़ कर बैठ जाओ.


मैंने एक हाथ से उसका कंधा पकड़ लिया और हम चलने लगे.


रास्ता काफ़ी खराब था, जिसकी वजह से झटके लग रहे थे और मैं बार-बार उसके करीब चली जाती थी.


मुझे मन ही मन बहुत अच्छा लग रहा था और साथ ही मैं डरी हुई भी थी कि कहीं कोई मुझे देख कर पहचान न ले कि मैं एक बदमाश के साथ हूँ.


कुछ देर बाद अचानक उसने बाइक रोक दी. मैंने उससे पूछा कि उसने बीच रास्ते में बाइक क्यों रोक दी?


तो उसने कहा कि बाइक खुद रुक गई है.


उसने बाइक स्टार्ट करने की कोशिश की पर कुछ नहीं हुआ. बाइक खराब हो गई थी.


उसने कहा- यहीं पास में एक जगह है, जहां तुम रुक सकती हो, तब तक मैं बाइक ठीक करवा लूँगा.


मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था. उस जगह पर तो कोई रिक्शा भी नहीं मिल सकता था.


मैंने उसकी बात मान ली और उसके साथ चल पड़ी.


वो मुझे लेकर किसी एक छोटे से घर में पहुंचा. मैंने उससे पूछा- क्या ये तुम्हारा घर है?


तो उसने कहा- नहीं, ये जगह बस मेरे दोस्तों के साथ टाइम पास के लिए है.


मैं अन्दर गई और उसने मुझे बैठने को कहा. गर्मी बहुत ज्यादा थी. वो अन्दर गया और मेरे लिए पानी ले आया.


मैं पानी पीने ही जा रही थी कि उसके हाथ की ठोकर से सारा पानी मेरे ऊपर गिर गया और मेरा पूरा ब्लाउज गीला हो गया. उसने मुझसे माफ़ी मांगी और कहा कि ये गलती से हुआ. मैंने कहा- कोई बात नहीं.


मुझे बाथरूम जाना था तो मैंने उससे पूछा और बाथरूम चली गई.


मैंने उससे बोल दिया कि तुम जल्दी से बाइक ठीक करवा कर ले आओ ताकि मैं घर जा सकूं.


कुछ देर बाद मैं बाथरूम से बाहर लौटी. मैं अपनी साड़ी ठीक करती हुई आगे बढ़ रही थी कि अचानक मेरा पल्लू कहीं अटक गया और मेरी छाती से सरक गया.


पल्लू छुड़ाने मैं पीछे मुड़ी तो मैं हैरान रह गई. वहां दारा खड़ा था.


वो बाइक ठीक कराने नहीं गया था और मेरा पल्लू कहीं अटका नहीं था बल्कि दारा ने ही उसे खींचा था. मेरा पल्लू उसके हाथ में था.


मैं सुन्न पड़ चुकी थी. मैं कुछ बोल नहीं पा रही थी.


वो मेरे पल्लू को लेकर मेरी ओर बढ़ा. वो मेरे करीब आया और मेरे पल्लू को उसने नीचे गिरा दिया.


मेरी सांसें तेज़ हो रही थीं. मैं इतनी भी कोशिश नहीं कर पाई कि अपना पल्लू उठा कर खुद को ढक लूं.


फिर उसने अपने हाथ मेरी कमर में डाला और मुझे मजबूती से अपनी तरफ़ खींच लिया. मैं मानो हिल भी नहीं पा रही थी.


मैं जानती थी ये गलत है, पर मैं चाह कर भी उसे रोक नहीं पा रही थी या फिर शायद रोकना ही नहीं चाहती थी. मेरा जिस्म इसके लिए तड़प रहा था.


उसने अपने दूसरे हाथ से मेरे चेहरे को पकड़ा और अपनी खुरदरी उंगलियों से मेरे नाजुक होंठों को मसल दिया.


इससे मेरी दर्द से आह निकल गई. फिर उसने मेरे बालों में हाथ डाल दिया. पीछे से मेरे बालों को जकड़ कर खींचा और मेरे होंठों को चूमने लगा.


वो पूरे जोश में मेरे होंठों को चूम रहा था. मुझे ये काफ़ी अच्छा लग रहा था.


मेरे पति ने मुझे कभी इस तरह नहीं चूमा था. मैं भी उसका पूरा साथ दे रही थी.


वो मेरे होंठों को बुरी तरह चूस रहा था. काफ़ी देर तक वो मुझे चूमता रहा.


फिर वो अपना हाथ मेरे पूरे बदन पर फेरने लगा.


उसने मेरे कपड़े उतारने शुरू किए और कुछ ही पल में मैं उसके आगे नंगी खड़ी थी. मेरे बदन पर बस एक पैंटी ही बची थी.


वो मेरे नंगे बदन को घूर रहा था. मुझे बहुत शर्म आ रही थी. मैं अपने हाथों से अपने स्तनों को ढकने की कोशिश कर रही थी पर मैं नाकामयाब थी.


उसने भी अपना कुर्ता निकाल दिया. उसने फिर मेरे हाथ को पकड़ा और मुझे अपनी ओर खींच लिया.


मेरे स्तन उसकी छाती से जाकर चिपक गए. उसने मुझे कस कर पकड़ रखा था जिससे मैं मेरे पैरों की बस उंगलियां ही जमीन को छू पा रही थीं.


मेरा पूरा शरीर उसकी बांहों में था. मेरा भरा-पूरा शरीर इतना हल्का भी नहीं था.


जितनी आसानी उसने मुझे उठा रखा था; इससे मुझे उसकी ताकत का अंदाज़ा हो रहा था. वो मेरे चेहरे, होंठ और गर्दन को चूम रहा था. मेरा मंगलसूत्र मेरे गले में उसे तंग कर रहा था. मंगलसूत्र के बार-बार बीच में आने से वो परेशान हो गया और उसने मेरा मंगलसूत्र गले से उतार कर हटा दिया.


मेरे स्तन उसकी छाती से रगड़े जा रहे थे. मैं उसके शरीर को महसूस कर रही थी.


उसका वो बड़ा और मजबूत शरीर किसी चट्टान की तरह सख्त था. उसकी चौड़ी छाती थी जो बालों से ढकी थी.


उसकी मजबूत पकड़ में तो मैं हिल भी नहीं पा रही थी. मेरा नाज़ुक शरीर उसकी मजबूत बांहों में मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि एक कमजोर हिरनी किसी शेर के कब्ज़े में हो.


उसकी बांहों में मैं बेबस महसूस कर रही थी जो मुझे अच्छा भी लग रहा था.


उसके बदन की वो महक मुझे और कामुक कर रही थी. मुझसे और रहा नहीं जा रहा था.


धीरे-धीरे उसने अपनी पकड़ ढीली की और मेरे बदन को सहलाते हुए अचानक ही उसने मेरी गांड को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर जोर से मसल दिया.


अचानक इस दर्द से मेरे मुँह से जोर की कराहती हुई चीख निकल गयी. उसने कुछ पलों तक अपनी पकड़ मजबूत ही रखी और फिर आराम से छोड़ दिया.


फिर उसने मेरे पेट को सहलाते हुए अपना हाथ मेरी पैंटी में डाल दिया. उसने जैसे अपने अपनी मोटी उंगलियों से मेरी चूत को छुआ, मेरा पूरा शरीर सिहर गया. ऐसा लगा जैसे पूरे शरीर में बिजली दौड़ गई हो.


मैं पहले से ही गीली हो चुकी थी. वो अपनी खुरदरी उंगलियों को मेरी कोमल चूत पर सहलाने लगा. मेरे लिए ये सब नया अनुभव था, मुझे ऐसा पहले कभी महसूस नहीं हुआ था.


मैं अपना होश खोए जा रही थी. मेरे मुँह से बस सिसकियां निकल रही थीं.


वो नीचे मेरी चूत सहला रहा था और ऊपर मेरे स्तनों से खेल रहा था. वो कभी मेरे स्तन को चूमता, कभी चूसता और कभी जोर से काट लेता.


ये सब मैं ज्यादा देर तक नहीं झेल पाई और मैं झड़ गई. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. ऐसा मज़ा तो मुझे अपने पति के साथ कभी सेक्स करके भी नहीं आया था.


मैंने सोचा भी नहीं था कि बिना चुदाई के भी कोई इतना मज़ा दे सकता है.


इस एक बार के झड़ने जितना मज़ा मुझे अपनी जिंदगी में कभी नहीं आया था, ये अब तक का मेरे जिस्म की आग के लिए ये सबसे अच्छा समय था. मैं यही सोच रही थी कि मेरे पति कभी मेरे साथ ऐसा क्यों नहीं करते.


दोस्तो, जो यह कोई मिल गया, उसने मेरे साथ आगे क्या किया, वो मैं आपको सेक्स कहानी के अगले भाग में लिखूंगी. आप मुझे मेल करके बताएं कि आपको यह कहानी कैसा लग रही है. [email protected]


मुझे कोई मिल गया मजा देने वाला कहानी का अगला भाग: मोहल्ले के गुण्डे के बड़े लंड से चुदाई का मजा- 2


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