वासना के समुन्दर में प्यार की प्यास- 1

वीनस

19-11-2023

26,210

सेक्स विद बॉस का मजा मैंने लिया उसके केबिन में! मैं एक तरह से अपने बॉस की रखैल बन चुकी थी. वह मनमर्जी से मेरा, मेरी चूत गांड का इस्तेमाल करता था.


यह कहानी सुनें.


नमस्कार दोस्तो, मैं आपकी चहेती वीनस … एक बार फिर से हाजिर हूं, अपनी अगली सेक्स कहानी लेकर।


आपने मेरी पिछली कहानी पायल की अतृप्त प्यास को बहुत प्यार दिया। आपके खत पढ़कर यकीन जानिए, मैंने भी अपनी चूत में उंगली की।


लेकिन यह नयी कहानी मेरी एक पुरानी कहानी होली, चोली और हमजोली के बाद की कहानी है.


जैसा कि मैंने अपनी उस कहानी में लिखा कि हमारे ऑफिस के लर्निंग इवेंट हर छह महीने में हुआ करते थे, अर्धवर्षिक और वार्षिक। वार्षिक इवेंट होने से पहले, सभी की पदोन्नति भी घोषित होती थी।


फिर वार्षिक लर्निंग इवेंट में नए पदों पर नियुक्त हुए लोगों का जाना अनिवार्य होता था क्योंकि इस इवेंट का पचास प्रतिशत खर्च नए पदों पर आए लोग उठाते थे तो प्रमोशन पार्टी भी साथ में निपट जाती थी।


जैसा कि मैंने पिछली कहानी में बताया, अपने अर्धवार्षिक इवेंट के बाद मैं दीपक और धीरज की रण्डी बन चुकी थी। रोज़ दीपक की गाड़ी में उसका लोड़ा चूसना, मेरी दिनचर्या का हिस्सा था।


बाकी लड़कियों की चुदाई करते रहने के बावजूद, दीपक मुझे हफ्ते में चार बार तो आराम से चोद ही लिया करते थे। दीपक को मेरी गांड मारना बहुत पसंद था।


अब आप उसे मेरी कल्पना माने या सच … मैं तो यही मानती थी कि मेरी गांड की सील उन्होंने तोड़ी थी।


हालांकि उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया, होली पर हुए सामूहिक चुदाई के कार्यक्रम को।


अगर वह मेरी सोच थी या मेरा सपना … तो भी याद करने भर से मैं आज भी गीली हो उठती हूं।


रह रह कर मैं यह सोचती कि उनकी पत्नी कैसे इतना चुद पाती होगी, वह तो परेशान हो जाती होगी। शायद इसीलिए दीपक अपनी चुदाई के नए जरिए बनाते रहते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन भी प्रभावित ना हो।


धीरज भी कभी कभी मुझे, वीकेंड पर होटल में ले जा कर चोदते थे।


और कभी कभी दीपक भी धीरज के साथ आते और मेरे साथ 3सम करते।


एक बार धीरज ने मुझे होटल में बुलाया. तो क्या देखती हूं, कमरे में दीपक और धीरज के साथ उनके 4 दोस्त भी थे।


कैसे उन सबने मिलके मेरा दमदार गैंग बैंग किया पूरी रात … वह कहानी फिर कभी! वह मेरी परीक्षा थी! कैसे … ये आपको इस कहानी में पता चलेगा।


मैं रोशनी को दिल से पसंद करने लगी थी. उसकी चूत के होंठों की प्यास बुझाए नहीं बुझती थी।


सुबह सबके आने से पहले मैं और रोशनी बाथरूम में मिलती और हम एक दूसरी को चूमती हुई उंगली करती।


आगे की कहानी में पढ़िए कि किस तरह मैं वार्षिक लर्निंग इवेंट में और कई मर्दों की भोग और वासना की वस्तु बनी। रोशनी जो पदोन्नति चाहती थी, उसका क्या हुआ। दीपक और धीरज ने कैसे मुझे इस्तेमाल कर खुद की तरक्की का रास्ता साफ किया।


अब आगे की सेक्स विद बॉस कहानी करीब 6 महीने बाद की …


उस दिन प्रमोशन लिस्ट अनाउंस होने को थी. रोशनी सुबह से ही बहुत उत्तेजित लग रही थी, उसे इस टीम में काम करते हुए 3 साल हो चुके थे. और वह पिछले ढाई सालों से दीपक और धीरज से चुदती आ रही थी। ऐसे में तरक्की की इच्छा होना स्वाभाविक था।


दोपहर 3 बजे ईमेल आ गया, हमारी टीम में प्रमोशन हुए लोगों में ज्यादातर मर्द थे। क्योंकि हमारी टीम में लड़कियों की तादाद वैसे भी कम थी। धीरज मैनेजर से सीनियर मैनेजर बन गए.


बहुत से लोग थे जो एनालिस्ट से सीनियर एनालिस्ट बने.


6 लोग थे जो सीनियर एनालिस्ट से सहायक मैनेज़र बने. उनमें दो लड़कियां शामिल थी. और चार लोग मैनेजर बनाए गए।


दीपक अभी भी अधीक्षक ही थे, उनका प्रमोशन नहीं हुआ था।


पर धीरज की तरह बाकी के चार नए मैनेजर को अपने साथ मिलाना और अपने वासना युक्त कारनामों में शामिल करना दीपक के लिए टेढ़ी खीर था।


रोशनी ईमेल पढ़कर काफी गुस्से में लग रही थी। गुस्सा, शर्मिंदगी या फिर निराशा … कुंठा से भरी … वह इन सभी भावों को एक साथ महसूस कर रही थी। जैसे कि उसके जिस्म का इस्तेमाल किया गया हो और फेंक दिया गया हो।


मैं रोशनी को बाथरूम में ले गई. वहां पहले ही लड़कियां प्रमोशन और वेतन में हुई वृद्धि की बातें कर रही थी। इसीलिए मैंने रोशनी के साथ थोड़ी दूरी बनाए रखी।


मैं चाहती तो थी कि उसे गले लगाऊं, उसका दर्द बांटू … उसकी भड़ास और कुंठा का मटका हल्का करने में मदद करूं। पर सबके रहते यह कर पाना मुश्किल था।


तभी दीपक का मेरे फोन पर मैसेज आया- इसी वक्त मेरे केबिन में आओ!


मैं रोशनी को अकेली बाथरूम में छोड़कर नहीं जाना चाहती थी। तो मैंने मेसेज को नज़रंदाज़ कर दिया। इस वक्त रोशनी को मेरी जरूरत थी।


थोड़ी ही देर में एक लड़की मुझे ढूंढते हुए बाथरूम आई और बोली- वीनस, तुझे दीपक सर बुला रहे हैं. “ठीक है, उन्हें बोल, मैं आ रही हूं.” मैंने जवाब दिया।


अब जाना जरूरी हो गया था. रोशनी ने खुद को टॉयलेट में बंद कर लिया था और वह दरवाजा नहीं खोल रही थी।


बाथरूम में सीन बनाने की बजाय मुझे दीपक ‘सर’ के पास जाना ठीक लगा।


उनके केबिन का दरवाजा खटखटाया क्योंकि धीरज उनके केबिन में बैठे थे।


दीपक सर का केबिन काफी बड़ा था, वहां एक तरफ सोफा और टेबल थी। दूसरी ओर उनके कोट टांगने का स्टैंड लगा था। उनके रूम में कॉन्फ्रेंस से कनेक्ट करने को एक बड़ा 55 इंच का मॉनिटर/फ्लैट टीवी भी लगा था।


उनकी बैठने की कुर्सी के दाहिने ओर एक सफेद बोर्ड, जिस पर लिखकर बड़ी बड़ी मीटिंग्स में स्ट्रेटजी तय की जाती थी।


उनकी टेबल काफी बड़ी थी और कुर्सी लेदर की थी। कुर्सी के पीछे एक खूबसूरत सी लड़की की पेंटिंग थी, जो अधनंगी थी। टेबल के बाएं ओर दाएं छोर पर लॉक वाले ड्रॉअर थे।


अंदर घुसने का दरवाजे वाली दीवार ही केवल शीशे की थी।


दरवाजे के दोनों तरफ बड़े बड़े दो लकड़ी के कैबिनेट थे जो शीशे की दीवार से कुछ भी दिखने नहीं देते थे। शीशे के दरवाजे पर ब्लाइंड्स का इंतजाम था.


किसी गोपनीय मीटिंग या ‘Do not disturb’ के लिए वे अक्सर दरवाजे के ब्लाइंड बंद कर देते और केबिन एक कमरे में तबदील हो जाता। फिर वे जो चाहे करते।


मुझे अंदर बुलाने पर उन्होंने धीरज को ब्लाइंड बंद करने का इशारा किया।


“अरे वीनस आओ बैठो, मैं कब से आपको ढूंढ रहा हूं, फोन पर मेसेज भी किया था.” दीपक अपने चिरपरिचित स्वभाव में बोले.


“जी, वो … मैं वाशरूम में थी.” मैंने देरी से आने का कारण छिपाते हुए कहा।


“चलो कोई बात नहीं, तुमने धीरज को मुबारकबाद दी? वे आज सीनियर मैनेजर बन गए हैं.” दीपक बोले. “बहुत बहुत बधाई हो सर आपको!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा.


“अरे यूं सूखे सूखे बधाई दोगी?” धीरज ने शरारती नज़रों से पूछा. और आगे बढ़ कर होंठ से होंठ मिला चुम्बन लेने लगे।


मेरे लिए धीरज और दीपक को चूमना चाटना, उनके द्वारा मेरा मसले जाना आम बात थी।


लिफ्ट में मौका देख, अकेले पाकर धीरज लिफ्ट को इमरजेंसी बटन दबा कर रोक दिया करते थे और मेरे चूचे निकाल कर चूसा करते थे।


दीपक भी कुछ कम नहीं थे, जब काम बहुत ज्यादा होता था तो वह बिल्डिंग के नीचे जाकर सिगरेट पीने की बजाए, बिल्डिंग की सीढ़ियों में सिगरेट पीते थे, ऐसे में कई बार आते जाते वह मुझे रोक कर सबसे ऊपर की मंजिल की सीढ़ियों पर ले जाकर एक त्वरित चुदाई कर लेते।


शाम को सबके जाने के बाद धीरज मुझे दीपक के केबिन में झुका कर चोदा करते थे।


दीपक के केबिन का कोई हिस्सा ऐसा नहीं था जहां मेरी चूत का रस ना गिरा हो।


कई बार तो ऐसा होता था कि दीपक की कॉन्फ्रेंस हॉल में जरूरी मीटिंग और वीडियो कांफ्रेंस होती थी, और मैं लकड़ी की मेज के नीचे बैठ उनका लोड़ा चूसती थी।


धीरज भी मुझे फोन पर मेसेज करके दफ्तर के अंधेरे सुनसान कोनों में बुलाकर कर मेरी चुदाई करते थे।


तो मेरे लिए उन दोनों से चुदना, उनका लोड़ा चूसना, अपने चूचे पेश करना, ऐसा था जैसे मैं उनके तीन वक्त का भोजन हूं। उनके लंड की भूख का इलाज थी मैं!


सेक्स विद बॉस मेरी दिनचर्या का अभिन्न अंग बन चुका था. सुबह सुबह आते ही सबसे पहले मैं दीपक के केबिन में जाती थी, अपनी पैंट/स्कर्ट, जो भी पहना होता था, खोल कर दीपक की टेबल के आगे खड़ी हो जाती थी … दीपक अपना लौड़ा चुसवा कर दिन की शुरुआत करते! अपना लोड़ा दोबारा चुसवा कर या शाम में चोद कर दिन का अंत करते।


गाड़ी में बैठे हुए, धुएं के कश लगाते हुए उन्हें चुसवाना बहुत पसंद था. वे एक कश जोर से खींचते, मेरा चेहरा हाथ में लेते और फिर कसकर चूमते हुए अपने कश का सारा धुआं मेरे मुंह में फेंक देते।


मैं उन दोनों लंड का tissue paper थी, जिसे वह जब चाहे इस्तेमाल करते।


खैर, धीरज को मुझे चूमता देख दीपक भी अपनी कुर्सी से उठ कर हमारे पास खड़े हो गए। उन्होंने मेरी कमीज के बटन खोल दिए और चूचे ब्रा से खींच के बाहर निकाल लिए।


जैसे कि मेरे चूचों को धीरज की चुसाई के लिए तैयार कर रहे हों।


उन्होंने मेरा बायां हाथ लिया और अपनी पैंट की जिप खोल के उसमें डाल दिया।


धीरज ने चुम्बन छोड़ मेरे चूचे चूसना शुरू कर दिया.


उधर दीपक ने भी अपना मोटा लोड़ा बाहर निकाल लिया था। अभी वह पूरी तरह तना नहीं था।


मैंने अपना मुंह टेढ़ा कर लिया और दीपक का लंड चूसने लगी।


धीरज अभी भी मेरे चूचे चूस रहे थे।


तभी दीपक के केबिन का फोन बजा। दीपक ने मुझे फोन का रिसीवर उठा के उनके हाथ में देने को कहा। मैंने अपने दाहिने हाथ से फोन उठा दीपक के आगे कर दिया।


दीपक लंड चूसवाते हुए फ़ोन पर बात करने लगे।


थोड़ा थोड़ा बीच में हंसी मजाक भी करते बात करने वाले के साथ!


फिर कुछ काम की बात करने लगे. उन्होंने अंग्रेजी में कहा- मुझे पांच मिनट दो, मैं अभी ज्वाइन करता हूं मीटिंग!


यह सुन धीरज के कान खड़े हो गए और उन्होंने मेरे चूचे छोड़ दिए। “सर क्या हुआ?” धीरज ने पूछा.


“कुछ नहीं, एक मीटिंग है अभी, जरूरी है।” दीपक ने जवाब दिया. “कोई बात नहीं सर, मैं बाद में आता हूं फिर! चलो वीनस!” “अरे नहीं, वीनस को यहीं रहने दो, अभी चुसाई खत्म कहा हुई है. तुम्हें एक बार फिर से मुबारक, बाद में मिलते हैं!”


दीपक यूं इतनी आसानी से मुझे जाने नहीं देते थे।


मैं कैबिनेट के पास जाकर खड़ी हो गई ताकि खुलते दरवाजे में से कुछ न दिखे।


अब दीपक ने दरवाजा बंद कर अंदर से लॉक कर लिया।


मुझे टेबल के नीचे उनके पांव के पास बैठने को कहा। मैं बैठ गई।


दीपक ने अपना लोड़ा पैंट में से दोबारा निकाल लिया और मैं फिर चूसने लगी।


तब दीपक ने मीटिंग कंप्यूटर से ज्वाइन कर ली और बहुत सहजता के साथ, काम करने लगे.


मैं नीचे बैठी उनकी चुसाई कर रही थी। उनका लोड़ा पूरी तरह तन गया था।


अब मेरा भी मन कर रहा था कि मैं उनके लौड़े पर बैठ कर कूदूँ और उनके मीटिंग में आए लोगों को अपनी जवानी के खेल दिखाऊं।


मीटिंग 15-20 मिनट में खत्म हो गई।


मीटिंग खत्म होते ही दीपक ने मेरी स्कर्ट खींचकर ऊपर उठा दी … मुझे टेबल पर झुकाया और मेरी गांड में लंड घुसाकर मेरी गांड मारने लगे।


तभी दीपक के केबिन के दरवाजे पे दस्तक हुई। कोई जोर जोर से दरवाजा पीट रहा था।


यह लम्बी कहानी है सेक्स विद बॉस की … कई भागों में समाप्त होगी. आप हर भाग पर अपनी राय मुझे मेल और कमेंट्स में भेजते रहियेगा. [email protected]


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